सम्पादकीय। गड़बड़ी रोकने के लिए परीक्षाओं में कारगर उपायों की तलाश हमारे शिक्षा व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। परीक्षाओं में गड़बड़ी से शिक्षा का स्तर प्रभावित होता है और विद्यार्थियों का भविष्य भी धीमा पड़ सकता है। इस समस्या को समाधान करने के लिए, सरकारों और शैक्षिक संस्थाओं को सख्ती से काम करने की आवश्यकता है, और एक गड़बड़ी रोकने का बिल इस मामले में महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।
परीक्षाओं में गड़बड़ी के कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि चिट्ठाकला, गलत उत्तर प्रदान करने की प्रवृत्ति, या अनुपातिक उपाय का लेन-देन। इन सभी मामलों में, गड़बड़ी रोकने का बिल एक माध्यम हो सकता है जो ऐसी प्रथाओं को निष्पेष कर सकता है और उन्हें रोक सकता है।
इस बिल के असर को समझने के लिए, कई महत्वपूर्ण तत्वों का ध्यान रखना आवश्यक है। पहले तो, बिल को संविधान और कानूनी प्रावधानों के साथ मिलाकर तैयार किया जाना चाहिए, ताकि वह विधियों के संरक्षण को ध्यान में रखते हुए काम कर सके। दूसरे, इसे परीक्षार्थियों को गलत कार्यवाही से बचाने और उन्हें शिक्षा के माध्यम से बेहतर वातावरण प्रदान करने के लिए प्रभावी रूप से लागू किया जाना चाहिए। तीसरे, बिल को लागू करने के बाद, इसका प्रभाव नियमित रूप से मॉनिटर किया जाना चाहिए, ताकि उसकी कार्यक्षमता और प्रभाव का मूल्यांकन किया जा सके।
परीक्षाओं में नकल, पेपर लीक और दूसरी गड़बड़ियां रोकने के लिए लाया गया लोकपरीक्षा (अनुचित साधन रोकथाम) विधेयक 2024 में एक गंभीर समस्या से निपटने की कोशिश की गई है। यह विधेयक मंगलवार को लोकसभा से पारित हो गया और अब इसे राज्यसभा में पेश किया जाना है। लोकसभा में इस पर बहस के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष का जो रचनात्मक रुख रहा और जिस तरह की स्वस्थ बहस इस पर हुई, उसकी भी तारीफ की जानी चाहिए।
परीक्षाओं में अनियमितता: पिछले कुछ वर्षों में सरकारी नियुक्तियों के लिए होने वाली परीक्षाओं में गड़बड़ियों का जैसे ट्रेंड ही चल पड़ा है। बड़ी संख्या में युवा दिन-रात मेहनत करके इन परीक्षाओं में शिरकत करते हैं और फिर पेपर लीक या अन्य गड़बड़ियों की वजह से परीक्षाएं रद्द हो जाती हैं। सिर्फ पिछले साल की बात की जाए तो राजस्थान में शिक्षक नियुक्ति परीक्षा, हरियाणा में ग्रुप डी पदों के लिए कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट, गुजरात में जूनियर क्लर्क नियुक्ति परीक्षा और बिहार में कॉन्स्टेबल नियुक्ति परीक्षा इनमें शामिल हैं।
संगठित अपराध : जिस निरंतरता से और जितने बड़े पैमाने पर परीक्षाओं में गड़बड़ियां देखी जा रही हैं, उससे यह संदेह होना स्वाभाविक है कि इसके पीछे कुछ संगठित गिरोहों का हाथ है, जिनकी सिस्टम के अंदर तगड़ी घुसपैठ है। ऐसे में इसे रोकने के लिए निश्चित रूप से बड़े प्रयासों की जरूरत है।
सख्त सजा : विधेयक में जिस तरह के कड़े प्रावधान किए गए हैं, वे सामान्य नहीं हैं। इनके अपने फायदे-नुकसान हो सकते हैं। हालांकि अच्छी बात यह है कि स्कूल-कॉलेजों की सामान्य परीक्षाओं को इससे बाहर रखा गया है और जो परीक्षाएं शामिल हैं उनमें भी स्टूडेंट्स और कैंडिडेट्स इस विधेयक के दायरे में नहीं हैं। फिर भी, ये प्रावधान इतने कड़े हैं कि इन पर अमल में विशेष सावधानी रखने की जरूरत है। इनका दुरुपयोग कई स्तरों पर खासा नुकसानदेह साबित हो सकता है।
कानून से आगे : मौजूदा हालात में इस समस्या के लिए नया कानून लाने के अपने तर्क हैं जो खारिज नहीं किए जा सकते। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह काफी होगा? ध्यान में रखने की बात है कि जिन कार्यों और गतिविधियों को इस बिल में कवर किया जा रहा है, वे पहले से दंडनीय अपराध हैं और उनके लिए कानून की अलग-अलग धाराएं पहले से मौजूद रही हैं। इसके बावजूद अगर इतने लंबे समय तक और इतने बड़े पैमाने पर धांधलियां चलती रही हैं तो वह सिर्फ कानून की कमी के चलते नहीं हुआ है। उसके पीछे कुछ न कुछ भूमिका कानून लागू करने की जिम्मेदारी निभा रहे लोगों और एजेंसियों की भी निश्चित रूप से रही है। ऐसे में देखने वाली बात होगी कि इस नए कानून के आने के बाद इसे लागू किस तरह से करवाया जाता है और यह वास्तव में कितना कारगर साबित होता है।
इस तरह, गड़बड़ी रोकने का बिल एक सकारात्मक कदम हो सकता है जो परीक्षाओं में न्याय और सत्यापन की प्रक्रिया को सुनिश्चित कर सकता है। यह बिल प्रशासनिक तंत्र को स्थिरता प्रदान कर सकता है और शिक्षा के क्षेत्र में भरोसे की वातावरण को बढ़ावा दे सकता है।
लेख- राजन पटेल, संपादक