त्रिवेणी के संगम पर आयोजित महाकुंभ में काशी के कलाकार अपनी कला का अद्भुत प्रदर्शन करेंगे। स्वांग और रास की मंडलियां पेशवाई के दौरान विभिन्न प्रकार के स्वांग रचेंगी। कहीं अघोरी भस्म की होली खेलते नजर आएंगे, तो कहीं भगवान श्री कृष्ण गोपियों संग रास रचाते दिखाई देंगे। महाकुंभ में सबसे बड़ा आकर्षण महाकाल की लीला होगी, जिसमें काशी के कलाकार अपनी प्रस्तुतियों से महाकाल के अद्भुत स्वरूप को जीवंत करेंगे।
इसमें खास तौर पर काशी की शिवबरात, बाबा विश्वनाथ की शोभायात्रा, मसान की होली और महाशिवरात्रि पर निकाली जाने वाली शिवबरात शामिल होंगी, जिनमें काशी की टोलियां भी भाग लेंगी। इन कार्यक्रमों में महाकाल के स्वरूप की सबसे अधिक मांग देखी जा रही है। महाकाल का रूप धारण करने वाले सोनू ने बताया कि भगवान का स्वांग रचना आसान नहीं होता है, लेकिन बचपन से ही इस कला को देखकर आज वह खुद महाकाल बनते हैं। 28 साल की उम्र में महाकाल का स्वरूप उन्हें अलग पहचान दिला चुका है। 2019 में उन्होंने पहली बार गौरी केदारेश्वर मंदिर में महाकाल का रूप धारण किया था, और तब से यह रूप उनकी पहचान बन गया।
सोनू ने बताया कि महाकाल की टोलियों में पार्वती की भूमिका निभाने वाली सपना और अघोरी की भूमिका निभाने वाले दस युवा काशी के विभिन्न स्थानों से आते हैं। उन्होंने कहा कि महाकाल के रूप में तैयार होने में तीन से चार घंटे लगते हैं, और इस स्वरूप में वह छह से आठ घंटे तक रहते हैं। सबसे खास बात यह है कि स्वांग रचाने वाले कलाकार अपना मेकअप खुद करते हैं, यानी कलाकार और मेकअप आर्टिस्ट की भूमिका भी स्वयं निभाते हैं।
सोनू ने यह भी बताया कि काशी में होने वाली शिवबरात, बाबा विश्वनाथ की शोभायात्रा आदि आयोजनों में उन्हें 61 हजार रुपये तक मिलते हैं, जबकि बाहर जाने पर उनकी फीस सवा लाख रुपये तक होती है। उन्होंने अब तक उत्तर प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, बिहार, मध्यप्रदेश और उड़ीसा में भी अपनी प्रस्तुतियां दी हैं। महाकाल के रूप में उनकी सबसे ज्यादा मांग है और वह साल भर में लगभग डेढ़ सौ से दो सौ कार्यक्रमों में भाग लेते हैं। काशी में दस से अधिक टोलियां इस तरह के स्वांग रचाने का काम करती हैं।