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सील होने के बावजूद पीछे से संचालित हो रहा डायग्नोस्टिक सेंटर, प्रशासनिक कार्यवाही पर उठे सवाल

सील सेंटर से अल्ट्रासाउंड जारी – प्रशासनिक मिलीभगत और मरीजों के हक़ का सौदा

महराजगंज। स्वास्थ्य व्यवस्था की धज्जियाँ उड़ाने वाला मामला परतावल सीएचसी के पास प्रकाश में आया है। करीब 100 मीटर की दूरी पर स्थित एक डायग्नोस्टिक सेंटर, जिसे पंजीकरण न होने के कारण नोडल अधिकारी केपी सिंह द्वारा विगत दिनों पूरी तरह सील किया गया था, वह अब भी गुपचुप तरीके से संचालित हो रहा है। विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार सेंटर के पिछले दरवाज़े से अल्ट्रासाउंड जांचें अब भी की जा रही हैं।यह मामला तब और अधिक संदेहास्पद हो गया जब परतावल सीएचसी के अधीक्षक ने दावा किया कि, “मेरी जानकारी के अनुसार केवल पैथोलॉजी और एक्स-रे विभाग ही सील हैं, अल्ट्रासाउंड नहीं।” यह बयान सीधा-सीधा प्रशासनिक भ्रम और विभागीय संवादहीनता को उजागर करता है। हालांकि जब इस बाबत दोबारा नोडल अधिकारी केपी सिंह से संपर्क किया गया, तो उन्होंने स्पष्ट किया कि, “पूरा सेंटर सील है। अगर पीछे के रास्ते से संचालन हो रहा है, तो जांच कर सख्त कार्रवाई की जाएगी।”

सेंटर के संचालक और स्टॉफ मेडिकल ड्रेस पहन कर सेंटर सामने खड़े होकर मरीजों को पीछे गली के रास्ते ले जाकर जाँच कर रहें है. आशाओं और नजदीकी हॉस्पिटल के कर्मचारियों के मिली भगत से यह खेल चालू है।

प्रशासनिक मिलीभगत या लापरवाही?

इस पूरे मामले ने स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए हैं। सेंटर को सील किए जाने के बावजूद यदि वहां गतिविधियां जारी हैं, तो यह या तो विभागीय मिलीभगत का मामला है या फिर घोर लापरवाही का। दोनों ही स्थिति में आमजन की सेहत और कानून की साख दोनों दांव पर हैं।

जनहित में सख्त कार्रवाई की दरकार

स्वास्थ्य विभाग की नाक के नीचे यदि अवैध रूप से कोई चिकित्सा संस्थान चलता है, तो यह प्रशासनिक तंत्र की निष्क्रियता को दर्शाता है। ज़रूरत है कि इस मामले की निष्पक्ष जांच कर दोषियों के खिलाफ दृढ़ और सार्वजनिक कार्रवाई की जाए, ताकि भविष्य में कोई भी कानून को ठेंगा दिखाने का दुस्साहस न कर सके।

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