राजन पटेल,संपादकीय। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने हिंदुत्व की राजनीति को एक नए स्तर पर पहुंचाया है। अखिलेश यादव, जो समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष हैं, को अब यह सवाल करना चाहिए कि क्या उन्हें भी हिंदुत्व की राजनीति का रुख करना चाहिए।एक ओर, भाजपा ने हिंदुत्व की राजनीति को अपने चुनावी अभियान का केंद्र बनाया है, जिससे उन्हें व्यापक समर्थन मिला है।
दूसरी ओर, सपा ने मुस्लिम और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के बीच अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखने की कोशिश की है।हालांकि, अखिलेश यादव को यह समझना चाहिए कि हिंदुत्व की राजनीति केवल भाजपा का एकाधिकार नहीं है। उन्हें अपनी पार्टी की विचारधारा को फिर से परिभाषित करने और हिंदुत्व की राजनीति को अपने तरीके से करने की कोशिश करनी चाहिए।इस संदर्भ में, महाकुंभ जैसे महत्वपूर्ण आयोजन को भी अपनी राजनीति में शामिल करना चाहिए।

महाकुंभ हिंदू समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण आयोजन है, जो हिंदू धर्म की एकता और सशक्तिकरण के लिए काम करता है।अखिलेश यादव को महाकुंभ जैसे आयोजनों में भाग लेना चाहिए और हिंदू समुदाय के साथ जुड़ने की कोशिश करनी चाहिए। इससे उन्हें अपने समर्थकों का विश्वास हासिल करने में मदद मिलेगी और उन्हें भाजपा के खिलाफ एक मजबूत चुनौती पेश करने में भी मदद मिलेगी।हिंदुत्व की राजनीति का अर्थ यह नहीं है कि आप अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ हैं। इसका अर्थ है कि आप हिंदू समुदाय की आकांक्षाओं और चिंताओं को समझते हैं और उनके लिए काम करते हैं।
अखिलेश यादव को यह समझना चाहिए कि हिंदुत्व की राजनीति केवल एक चुनावी रणनीति नहीं है, बल्कि यह एक विचारधारा है जो हिंदू समुदाय की एकता और सशक्तिकरण के लिए काम करती है।उन्हें अपनी पार्टी की विचारधारा को फिर से परिभाषित करने और हिंदुत्व की राजनीति को अपने तरीके से करने की कोशिश करनी चाहिए। इससे न केवल उन्हें अपने समर्थकों का विश्वास हासिल करने में मदद मिलेगी, बल्कि उन्हें भाजपा के खिलाफ एक मजबूत चुनौती पेश करने में भी मदद मिलेगी।
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