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POCSO एक्ट के दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता, कानून में संतुलन की मांग तेज

नई दिल्ली। बच्चों को यौन अपराधों से सुरक्षा देने के उद्देश्य से बनाए गए POCSO एक्ट के दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता जताई है। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह कानून नाबालिगों की रक्षा के लिए बेहद जरूरी है, लेकिन इसका गलत इस्तेमाल निर्दोष लोगों के लिए भारी परेशानी का कारण बन रहा है।

अदालत ने जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि कई बार पति-पत्नी के विवादों, या किशोर-किशोरियों के आपसी सहमति वाले संबंधों में भी इस एक्ट का इस्तेमाल किया जा रहा है। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में “निजी दुश्मनी या झूठे आरोप” लगाकर POCSO का दुरुपयोग हो रहा है, जो न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।

कानून का उद्देश्य और चुनौती

बता दें कि POCSO एक्ट नवंबर 2012 में लागू किया गया था, ताकि नाबालिगों को किसी भी प्रकार के यौन शोषण से कानूनी सुरक्षा दी जा सके। इस कानून के तहत नाबालिग की सहमति को भी अपराध से मुक्ति का आधार नहीं माना जाता। लेकिन, इसी प्रावधान के कारण कई बार ऐसे मामलों में कठिनाई उत्पन्न हो जाती है, जहां किशोरों के बीच आपसी सहमति से संबंध रहे हों।

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में प्रेम संबंध में रहे एक युवक को बड़ी राहत दी। युवक को पहले नाबालिग प्रेमिका के साथ संबंधों के आरोप में 10 साल की सजा मिली थी, लेकिन अदालत ने उसे बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि हर मामले को उसके सामाजिक और व्यावहारिक संदर्भ में समझना जरूरी है।

न्यायपालिका का दृष्टिकोण

अप्रैल 2024 में दिल्ली हाई कोर्ट ने भी टिप्पणी की थी कि “एक गलत सजा, गलत बरी होने से कहीं ज्यादा हानिकारक होती है।” अदालत ने कहा कि झूठे बाल यौन शोषण के मामलों से किसी व्यक्ति की पूरी जिंदगी बर्बाद हो सकती है, क्योंकि ऐसे मामलों का दाग अक्सर जीवनभर नहीं मिटता।

कानून में सुधार और जागरूकता की जरूरत

हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि POCSO एक्ट ने देश में बच्चों की सुरक्षा को लेकर एक सकारात्मक बदलाव लाया है। वर्ष 2017 से 2022 के बीच इस कानून के तहत दर्ज मामलों में 94% की वृद्धि हुई है, और सजा की दर 90% से अधिक रही है।

फिर भी, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को सलाह दी है कि कानून की भावना को कायम रखते हुए इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए संतुलित सुधार किए जाएं। साथ ही, समाज में कानूनी जागरूकता बढ़ाने और नाबालिगों से जुड़े मामलों की संवेदनशील जांच सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि कानून का मकसद बच्चों की सुरक्षा है, न कि निर्दोषों को सजा देना। इसलिए न्यायपालिका और सरकार दोनों को मिलकर ऐसा संतुलन बनाना होगा जिससे न्याय भी मिले और अन्याय भी न हो।

लेखक- राजन पटेल, संपादक

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